विवेकानंद की पुस्तक ने मेरी जिंदगी बदल दी: अन्ना
हजारे
 ने रामकृष्ण मिशन में पत्रकारों से कहा कि मैं 26 वर्ष की उम्र से 
भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के खिलाफ जंग लड़ रहा हूं। एक दिन मैं देश के 
बारे में सोच रहा था और संयोग से मुझे रेलवे स्टेशन पर स्वामी विवेकानंद का
 एक पोस्टर दिख गया। इसके बाद मैंने उस महान विद्वान की एक पुस्तक खरीदी। 
निस्वार्थ लोग अच्छी तरह देश की सेवा करते हैं। उनके इस विचार ने मेरे जीवन
 में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया और मुझे यह अच्छी तरह समझ में आ गया कि एक 
कुंवारा ही पूरी तरह से निस्वार्थ हो सकता है। इसके बाद मैंने अविवाहित 
रहकर देश की सेवा करने का व्रत लिया। हजारे को लिंगायत पंचमसाली जद्गुर 
महापीठ की ओर से ‘बसव कृषि पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
हजारे
 ने कर्नाटक की जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई में आगे आने का 
आह्वान करते हुए कहा कि मैं ताउम्र भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ता रहूंगा। मुझे
 मौत से डर नहीं लगता। ऐसे बहुत से लोग हैं जो निस्वार्थ भाव से भ्रष्टाचार
 के खिलाफ जंग में जुटे हैं। उन्होंने कहा कि रिश्वत से अस्वस्थ समाज का 
निर्माण होता है लोगों को स्वामी विवेकानंद के विचारों को अंगीकार करना 
चाहिए। उन्होंने कहा कि निस्वार्थ जीवन अनमोल है। 
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