कायम है झंडा तकनीक "Live Hindustan"
मोबाइल, इंटरनेट के इस सूचना क्रांति के दौर में भी तीर्थराज प्रयाग में चल
रहे महाकुंभ मेले में तीर्थ पुरोहित झंडा तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं।
श्रद्धालु विशाल मेला क्षेत्र में अपने तीर्थ पुरोहितों के शिविर की पहचान
उनके झंडे को देखकर करते हैं और फिर वहां पहुंचते हैं।
देश-विदेश से यहां पहुंचने वाले लाखों श्रद्धालु पूजा-पाठ और दान-पुण्य के लिए अपने पुरोहितों के पास जाते हैं। पुराहितों के पास पहुंचने के लिए न तो उन्हें फोन करते हैं और न ही किसी से पूछते हैं। श्रद्धालु अपने धर्म पुरोहितों के शिविर के झंडे को पहचान कर आसानी से वहां पहुंच जाते हैं। इलाहाबाद के दारागंज निवासी धर्म पुरोहित ओंकार नाथ शास्त्री ने कहा कि श्रद्धालुओं के लिए नाम या मोबाइल नम्बर का खास महत्व नहीं है। वे अपने-अपने पुरोहितों के शिविर के झंडे पहचानते हैं और उसी को देखकर इस भव्य मेला क्षेत्र में अपने पुरोहित को आसानी से ढूंढ लेते हैं। महाकुम्भ मेला क्षेत्र में एक हजार से अधिक धर्म पुरोहितों के शिविर हैं। लेकिन सभी के झंडे अलग-अलग हैं और श्रद्धालु उन्हीं के जरिए उनकी पहचान करते हैं। कीडगंज निवासी धर्मपुरोहित गोकुल प्रसाद ने बताया कि मेला क्षेत्र में करीब डेढ़ हजार धर्म पुरोहितों के शिविर हैं। किसी पुरोहित के झंडे का निशान राधा-कृष्ण, किसी का मर्यादा पुरुषोत्तम राम, किसी का हाथी-घोड़ा, किसी का शेर, किसी का त्रिशूल, किसी का सूर्य, किसी का कलश, किसी का सिपाही है। हर श्रद्धालु को अपने धर्म पुरोहित के झंडे का निशान पता है। धर्म पुरोहितों के झंडे के निशान वर्षों पुराने हैं और वे उसे कभी बदलने का जोखिम नहीं उठाते, क्योंकि इससे उनके जजमानों को उन तक पहुंचने में मुश्किल होगी। धर्म पुरोहित महादेव नाथ ने कहा कि मेरे झंडे की पहचान राधा-कृष्ण है, जो 100 साल से अधिक पुराना है। यह झंडा मेरे पिता जी द्वारा बनाया गया था। हम उसी का अनुसरण करते आ रहे हैं। हमारे जजमान भी सैकड़ों साल से हमसे जुड़े हैं और महाकुम्भ या अर्ध कुम्भ के दौरान वे यहां आकर हमसे ही धार्मिक कार्य सम्पादित कराते हैं। नाथ ने बताया कि हर जजमान अपनी आने वाली पीढ़ी को अपने-अपने धर्म पुरोहितों के झंडे के निशान के बारे में बता देता है, जिससे उनके परिवार के सदस्यों को महाकुम्भ या अर्ध कुम्भ मेले के दौरान उन्हें ढूंढने में आसानी होती है। धर्म पुरोहितों के मुताबिक, मोबाइल के जमाने में अन्य लोगों की तरह ही पुरोहितों के पास भी मोबाइल होते हैं, लेकिन उनके पास आने वाले जजमान कभी उनके मोबाइल नम्बर नहीं मांगते, क्योंकि जजमानों को इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती है।
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संगम (इलाहाबाद), एजेंसी

देश-विदेश से यहां पहुंचने वाले लाखों श्रद्धालु पूजा-पाठ और दान-पुण्य के लिए अपने पुरोहितों के पास जाते हैं। पुराहितों के पास पहुंचने के लिए न तो उन्हें फोन करते हैं और न ही किसी से पूछते हैं। श्रद्धालु अपने धर्म पुरोहितों के शिविर के झंडे को पहचान कर आसानी से वहां पहुंच जाते हैं। इलाहाबाद के दारागंज निवासी धर्म पुरोहित ओंकार नाथ शास्त्री ने कहा कि श्रद्धालुओं के लिए नाम या मोबाइल नम्बर का खास महत्व नहीं है। वे अपने-अपने पुरोहितों के शिविर के झंडे पहचानते हैं और उसी को देखकर इस भव्य मेला क्षेत्र में अपने पुरोहित को आसानी से ढूंढ लेते हैं। महाकुम्भ मेला क्षेत्र में एक हजार से अधिक धर्म पुरोहितों के शिविर हैं। लेकिन सभी के झंडे अलग-अलग हैं और श्रद्धालु उन्हीं के जरिए उनकी पहचान करते हैं। कीडगंज निवासी धर्मपुरोहित गोकुल प्रसाद ने बताया कि मेला क्षेत्र में करीब डेढ़ हजार धर्म पुरोहितों के शिविर हैं। किसी पुरोहित के झंडे का निशान राधा-कृष्ण, किसी का मर्यादा पुरुषोत्तम राम, किसी का हाथी-घोड़ा, किसी का शेर, किसी का त्रिशूल, किसी का सूर्य, किसी का कलश, किसी का सिपाही है। हर श्रद्धालु को अपने धर्म पुरोहित के झंडे का निशान पता है। धर्म पुरोहितों के झंडे के निशान वर्षों पुराने हैं और वे उसे कभी बदलने का जोखिम नहीं उठाते, क्योंकि इससे उनके जजमानों को उन तक पहुंचने में मुश्किल होगी। धर्म पुरोहित महादेव नाथ ने कहा कि मेरे झंडे की पहचान राधा-कृष्ण है, जो 100 साल से अधिक पुराना है। यह झंडा मेरे पिता जी द्वारा बनाया गया था। हम उसी का अनुसरण करते आ रहे हैं। हमारे जजमान भी सैकड़ों साल से हमसे जुड़े हैं और महाकुम्भ या अर्ध कुम्भ के दौरान वे यहां आकर हमसे ही धार्मिक कार्य सम्पादित कराते हैं। नाथ ने बताया कि हर जजमान अपनी आने वाली पीढ़ी को अपने-अपने धर्म पुरोहितों के झंडे के निशान के बारे में बता देता है, जिससे उनके परिवार के सदस्यों को महाकुम्भ या अर्ध कुम्भ मेले के दौरान उन्हें ढूंढने में आसानी होती है। धर्म पुरोहितों के मुताबिक, मोबाइल के जमाने में अन्य लोगों की तरह ही पुरोहितों के पास भी मोबाइल होते हैं, लेकिन उनके पास आने वाले जजमान कभी उनके मोबाइल नम्बर नहीं मांगते, क्योंकि जजमानों को इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती है।
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