आईबीएन-7
दरअसल
तेल की धार को अब सरकार ने तेल कंपनियों के हवाले कर दिया है। साफ है
सरकार ने वेलफेयर स्टेट का चोला उतार फेंका है। डीजल अब बार-बार महंगा
होगा, क्योंकि अब डीजल के दाम सरकार तय नहीं करेगी। डीजल पर भारी भरकम
सब्सिडी का रोना रोते हुए सरकार ने विष का ये प्याला पिया। सरकार की ओर से
बताया गया कि पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाने की सिफारिश केलकर कमेटी ने
अपनी रिपोर्ट में की है, इस पर कैबिनेट ने घंटों मंथन किया। रिपोर्ट में
तो डीजल की कीमत साढ़े 4 रुपये तक बढ़ाने और कुछ महीने बाद हर महीने एक एक
रुपए और बढ़ाने की सलाह दी गई थी। इतना ही नहीं, जेब में आग लगाने वाली इस
रिपोर्ट में तो रसोई गैस की कीमत 150 रुपये तक बढ़ाने और कुछ महीनों बाद हर
महीने दस-दस रुपए बढ़ाने की वकालत तक की गई थी। केलकर कमेटी की रिपोर्ट ने
मिट्टी के तेल के दाम 35 पैसे से लेकर 2 रुपये प्रति लीटर बढ़ाने की
सिफारिश की गई थी।
लेकिन
सरकार ने बीच का रास्ता निकाला। सरकार ने तेल कंपनियों को डीजल की कीमतें
हर महीने पचास पैसे प्रति लीटर बढ़ाने की इजाजत दे दी है। बताया जा रहा है
कि अब ज्यादा डीजल खरीदने वालों को डीजल का बाजार भाव चुकाना पड़ेगा।
हालांकि कहा जा रहा है कि ये फैसला तेल कंपनियों ने लिया है।
गौरतलब
है कि सरकारी तेल कंपनियां प्रति लीटर डीजल पर करीब 10 रुपये का नुकसान
भरती हैं। सब्सिडी के तौर पर इसका बोझ सरकार उठाती है। एक साल में सरकार को
तेल सब्सिडी पर 1 लाख 55 हजार 313 करोड़ रुपये फूंकने पड़ रहे हैं। तेल
कंपनियों की मानें तो उन्हें सालाना 94 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा
है। इसलिए अब सरकार डीजल को घाटा फ्री करने की तैयारी में है।